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प्रधानमंत्री मोदी का बड़ा बयान तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा...

प्रधानमंत्री मोदी का बड़ा बयान तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा...


लखनऊ:
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले करीब एक वर्ष से अधिक समय से विवादों में घिरे तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा की और कहा कि इसके लिए संसद के आगामी सत्र में विधेयक लाया जाएगा|


तीनों कृषि कानूनों के विरोध में किसान महीनों से आंदोलन कर रहे थे|प्रधानमंत्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से जुड़े मुद्दों पर एक समिति बनाने की भी घोषणा की है|

हालांकि इन कानूनों का विरोध पिछले साल नवंबर में पंजाब से शुरू हुआ था, लेकिन बाद में मुख्य रूप से दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैल गया किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन कानूनों के जरिये उचित मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ सकता है|

वहीं केंद्र सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दिया था|हालांकि कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं|


किसान यूनियन और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हुई थीं, लेकिन गतिरोध जारी रहा, क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर कायम हैं| 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर रैली 
के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो पाई थी|

हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने पहले यह दावा करते हुए काफी समय बिताया कि उनकी सरकार ने भारत के किसानों का उत्थान किया है और उनकी मदद के लिए ‘हरसंभव कोशिश’ करी है| सरकार अपनी उपलब्धियों की प्रशंसा में दस मिनट बिताने के बाद उन्होंने  तीन विवादास्पद कृषि कानूनों की प्रशंसा की|


वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सम्भोधन में कहा कि सरकार तीन नये कृषि कानून के फायदों को किसानों के एक वर्ग को तमाम प्रयासों के बावजूद समझाने में नाकाम रही है| उन्होंने कहा कि इन तीनों कृषि कानूनों का लक्ष्य किसानों विशेषकर छोटे किसानों का सशक्तीकरण था|

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘देश के कोने-कोने में कोटि-कोटि किसानों, अनेक किसान संगठनों ने इसका स्वागत किया, समर्थन किया. मैं आज उन सभी का बहुत आभारी हूं. हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव गरीब के उज्ज्वल भविष्य के लिए, पूरी सत्य निष्ठा से, किसानों के प्रति समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये कानून लेकर आई थी| लेकिन इतनी पवित्र बात पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए है|

हालांकि बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कृषि अर्थशास्त्रियों ने, वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया| लेकिन ‘आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है| इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा करेंगे|

मैं देश से माफी मांगता हूं क्योंकि लगता है कि हमारे प्रयासों में कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण हम कुछ किसानों को सच्चाई समझा नहीं पाए| आज गुरु नानक जयंती है और किसी को दोष देने का समय नहीं है| मैं यह घोषणा करना चाहता हूं कि हमने इन कानूनों को निरस्त करने का निर्णय लिया है| मुझे उम्मीद है कि प्रदर्शन कर रहे किसान अब अपने घरों, अपने खेतों को लौटेंगे और हम नए सिरे से शुरुआत कर सकेंगे|

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, ‘एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए,ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमेटी का गठन किया जाएगा| इस कमेटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री होंगे|

उधर, भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता राकेश टिकैत ने शुक्रवार को कहा कि संसद में विवादास्पद कानूनों को निरस्त करने के बाद ही, वे कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ चल रहा आंदोलन वापस लेंगे|


उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार को फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और दूसरे मुद्दों पर भी किसानों से बात करनी चाहिए|

टिकैत ने ट्वीट किया, ‘आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा, हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा| सरकार, एमएसपी के साथ-साथ किसानों के दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत करे|

किसान यूनियन ने प्रधानमंत्री के घोषणा का किया स्वागत...


प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद 40 किसान संघों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने कहा, ‘हम तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के सरकार के फैसले का स्वागत करते हैं, इस घोषणा के संसदीय प्रक्रियाओं के जरिए पूरा होने तक इंतजार करेंगे.’

एसकेएम ने कहा कि आंदोलन सिर्फ नए कृषि कानूनों के खिलाफ ही नहीं था, फसलों के लाभकारी मूल्य की वैधानिक गारंटी की मांग अब भी लंबित है|





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