जानिए जिला फतेहपुर का क्या है इतिहास...
लखनऊः जिला फतेहपुर कहने को तो छोटा जिला है लेकिन इस छोटे से जिले का काफी पुराना इतिहास रहा है मुगल बादशाह से लेकर ब्रिटिश गवर्नर का जिले फतेहपुर में आना होता था। हालांकि इस जिले को पहले हसवां फतेहपुर, कोड़ा फतेहपुर के नाम से जाना जाता था लेकिन फतेहपुर जिले को पहचान सन् 1814 में मिली।
फतेहपुर जिले में गौतम क्षत्रियों की स्टेट अरगल का अस्तित्व 1556 ईसवी में खतम हुआ था। हुमायूं के दोबारा दिल्ली की गद्दी पर बैठने के एक साल बाद उसकी मृत्यु होने पर दिल्लीश्वर बने अकबर के सूबेदार ने कालपी के समीप तत्कालीन अरगल नरेश राजा भैरों शाह को अंतिम रूप से परास्त करके अरगल किला धराशाई कराकर स्टेट का अस्तित्व सदा के लिए खतम कर दिया था। इस तरह से 457 साल पहले गौतमों के राज्य का अस्तित्व समाप्त हुआ था.
सम्राट अकबर 1561 ईसवी में स्वयं मुगल रोड होते हुए जौनपुर गया और वहां से वापस होते समय फतेहपुर के भू-भाग के शासन के लिए कमाल खां को हंसवा फतेहपुर में छोड़ गया था। उसके बाद के शासक आसफ खां व अबुल मजीद नियुक्त हुए। सन 1567 ईसवी में इस भू-भाग का सूबेदार मुनीम खां खानखाना बनाया गया और सूबे का केंद्र कड़ा (वर्तमान में कौशांबी जिले में है) से हटाकर इलाहाबाद में स्थापित किया गया। अकबर के काल में यह भू-भाग कड़ा और कोड़ा (वर्तमान कोड़ा जहानाबाद फतेहपुर) में विभक्त रहा। कोड़ा सरकार में तीन दस्तूर थे। कोड़ा, कुटिया और जाजमऊ। कड़ा सरकार में 12 मुहाल थे। कोड़ा में गुनीर, कुटिया, कीरतपुर, करांडा परगने थे। कड़ा सरकार में फतेहपुर हंसवा, हंसवा, ऐझी, कुपड़ा, अयाह शाह, रारी, हथगाम और कोतला को मिलाकर आठ परगने थे। परगना एकड़ला और धाता 1798 ईसवी में स्थापित किए गए.
अकबर बादशाह के मशहूर मंत्री व नवरत्नों में हास्य विनोद के लिए विख्यात बीरबल का ननिहाल इसी जनपद के गंगा नदी के किनारे एकड़ला में था। अकबर जब बीरबल के साथ नाव के ज़रिये गंगा मार्ग से इलाहाबाद में बन रहे (1566-1593) में किले को देखने जा रहे थे, तो बीरबल के मुह से एकड़ला में ननिहाल होने की चर्चा सुनकर नाव एकडला में रोकवाकर एकड़ला गए थे। यहां पर एकड़ला के ताल्लुकेदार पद्मसिंह ने मखमली कालीन बिछाकर स्वागत किया था। सम्राट अकबर ने पद्म सिंह को रावत और रारी के वैश्य ठाकुरों को चौधरी और कायस्थों की कानूनगो की उपाधियां दी थी। अकबर ने एकड़ला को कंचनपुरी के नाम से संबोधित किया था।
60-1665 में फ्रांसीसी यात्री तायोर्नियेने आगरा से बनारस तक की अपनी यात्रा के वर्णन में जिले के हथगाम और शहजादपुर का उल्लेख किया है। कोड़ा से मिला जहानाबाद शाहजहां की स्मृति में बसाया गया। हंसवा को फिर से अबू मोहम्मद ने 1642 ईसवी में बसाया था। शाहजहां के फरमान पर फतेहपुर शहर का चौधराना मोहल्ला इसी काल में बसाया गया था। औरंगजेब ने राज्य गद्दी की लड़ाई में अपने भाई शहजादा शुजा को इसी जिले के खजुहा में 5 जनवरी 1658 में युद्ध करके परास्त करके मार डाला था। इसी विजय की खुशी में औरंगजेब ने खजुहा में बाग बादशाही, तालाब, सरांय आदि का निर्माण कराया था, जो अभी तक मौजूद हैं। औरंगजेब के शासन काल में संत कवि चंददास ने हंसवा में रहकर अपनी भक्ति पूर्ण काव्य की अमृत वाणी प्रवाहित की थी.
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